Page 25 - संगम - चेन्नई क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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सगम - ततीय स�रण / �सतबर - 2025
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�ित क झरोख स े
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नर� कमार
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क़ागज़ पर �लख “ठडी बयार” श�ों को पढ़न और खल म अपन गालों स टकराती म� पवन क
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झोंको क अनभव म ख़ासा फक होता ह I बा�रश की पहली बदों क ज़मीन पर पड़न स उठी िमट्टी
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की सौंधी महक, श�ों म महसस नहीं की जा सकती I समद्र स उठन वाली लहरों को िबना दख े
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प्राकितक सौंदय क नज़ार को कस अपनी आखों म भरा जा सकता ह I मिदर म िबना प्रवश क
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दीप �शखा क िद� दशन स िमलन वाल आ��क आनद को सनकर तो महसस नहीं िकया जा
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कछ ऐसा ही अनभव दि�ण भारत क कारोबारी शहर च� म रहकर च� क िवषय म िवगत एक
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वष म �आ I मानव महासमद्र की स�ा स सशोिभत भारत का प्र�क भ-भाग अपनी कितपय
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िव�श�ताए �लए �ए ह I िक� एक उ�र भारतवासी क दि�ण भारत म आकर, यहा बसकर, यहा
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की स�ित को जी-कर महसस करना अपन आप म कम रोमाचकारी नहीं I भाषा म फक, मौसम
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म अतर, खान-पान म िविवधता और
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पजा-अचना पद्धित म िभ�ता, ��
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तौर पर उ�र भारत क अ� रा�ों
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स अलग ह I यहा बात िकसी भाषा,
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खानपान या पजा अचना पद्धित क
िकसी स श्र� होन या उ�म होन स े
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नहीं, अिपत अतर, िवशद्ध अतर क
�प म ही ह I
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दि�ण भारत की अवाचीन पजा-
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अचना पद्धित का कोई सानी नहीं I
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शायद उ�र भारत पर वष इतन ना�रयल इ�माल न करता होगा �जतन यहा िकसी भी मगल
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�ोहार पर ई�र को समिपत कर फोड़ जात ह I मगलाचार क बीच दव-दवी �ान पद्धित, उ�र
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भारत स कहीं अिधक लबी और िभ� ह I मिदरों क गोपरम, मडपम और वा�कारी कला-कौशल,
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िनि�त �प स अपनी सौंदयपण िभ�ता �लए �ए ह I ईश दशन स पव उनक वाहन दशन, िनि�त
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तौर पर ईश-प�रचय क �� द्योतक ह I दि�ण भारतीय भाषायों क स�त भाषा स अिधक
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साि�� म होन क कारण मत्रोचार म श�ों क सही उ�ारण की �� झलक िदखलाई पड़ती ह
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I इन िभ�तायों स िकसी धम िवशष या पजा-अचना पद्धित िवशष क िकसी अ� धम िवशष या
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पजा-अचना पद्धित िवशष स उ�� होन का प्र� नहीं, मत� कवल िभ�ता को समझना और
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समझाना ह I
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