Page 7 - संगम - चेन्नई क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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सगम - ततीय स�रण / �सतबर - 2025
सबोधन
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भारत भिम अनक भाषाओं, पर�राओं, रीित-�रवाजों एव ब�िवध खानपान स प�िवत-पोिषत, एकिन� स�ित का अनपम
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उदाहरण ह I ब�िवध, ब�प� अनकता होन पर भी इन सभी का ऐ� भाव हमारी िवपल सा�ितक धरोहर की एकता का मलाधार ह I
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सरल श�ों म कह तो हमारी अपनी अनक भाषाए ह और सभी अपनी ह, हमारी अनक पर�राए ह और सभी अपनी ह, हमार अनक रीित
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-�रवाज़, अनक खान-पान और अनक आ�ा पद्धितया, अनक होन पर भी हमार ह, एक ह I ऐसा अनपम एव अिद्वतीय, अनठा उदाहरण
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अ�त्र सहज सलभ नहीं।
यही कारण ह िक एक भाषा क श�ों का दसरी भाषा म भी सहज प्रयोग दखन को िमल जाता ह I एक भ-भाग क रीित-�रवाज
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कहीं-न-कहीं दसर भ-भाग स मल खात ह I इस �लहाज़ स िह�ी भाषा भी दसरी अनक भारतीय भाषाओं क श� भडार स पोिषत एव ं
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लाभा��त होती रही ह और इसी कारण उनकी ऋणी भी ह I य तो अपन का अपन स लन-दन, ऋणभाव नहीं अिपत �हभाव ह, अपनापन
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ह, सहजता ह I पनः यही त� िनकल कर सामन आता ह िक हम बाहर स अनक होन पर भी भीतर स तो एक ही �ए I
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�जस प्रकार एक प�रवार क अनक सद�ों का आपस म कोई वर भाव नहीं होता एव उनकी आपसी तलना का कोई प्र� नहीं
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होता, ठीक उसी प्रकार िह�ी भाषा का भी अ� भारतीय भाषायों स कोई वमन� भाव नहीं, कोई प्रितयोिगता नहीं I एक रा� � की अनक
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भाषायों म स कोई भी भाषा बड़ी या छोटी नहीं हो सकती I िकसी भी भाषा क उ�� अथवा िनक� होन का प्र� ही नहीं बनता I
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इस भािषक विव� म िह�ी का भी अप्रितम योगदान िनिववाद ह I सरकारी कामकाज को राजभाषा म करन क सािविधक
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दािय� िनवहन म अ� भारतीय भाषाओं की श�-सपदा क भरपर समायोजन स कोई रोक नहीं ह I िनज भाषा प्रयोग, िनज उ�ित की
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ही प�रचायक ह I
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यह मर �लए अ�त सखद समाचार ह िक दि�ण अचल ��त च� �त्रीय कायालय राजभाषा म अपनी
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गह पित्रका “सगम” क ई-स�रण का प्रकाशन कर रहा ह I भारत सरकार की राजभाषा नीित क अनपालन म इस
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पित्रका का प्रकाशन िनि�त �प स सराहनीय ह I स�ण सपादक म�ल इस महती काय क �लए बधाई का पात्र ह I
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िह�ी िदवस की शभकामनायों सिहत
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सजय कलश्र�
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अ�� एव प्रबध िनदशक
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