Page 36 - गुज गरिमा
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िह�ी और उसक� सहायक भाषाए यहाँ तक िक अपने ही दश में सबसे हीन भावना से दखी जाने वाली भोजपुरी
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भी पूर िव� पटल पर अपनी समृद्धता व श्रे�ता का लोहा मनवा रहीं हैं । यही कारण है िक गूगल, फसबुक आिद
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कपिनयां भी िह�ी व अ� भारतीय भाषाओं को इतना मह� द रहीं हैं । अब आव�कता है उन लोगों को
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उबरने क� जो हीन भावना से ग्र�सत हैं.
हमे ये समझना होगा िक भाषा �सफ िवचारों क� अ�भ��� है, भाषा ��� क� �मता का प�रचायक नहीं हो
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सकती, दश क युवाओं को �भाषा को लकर िवदशी शासन द्वारा उ�� क� गई हीन भावना को दूर कर अपनी
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�भाषा व राजभाषा को �ीकार कर उ�ें समृद्ध बनाने में योगदान दना चािहए । जब तक दश का युवा अपनी
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�मताओं क आधार पर अपनी भाषा में मौ�लक �चंतन क� अ�भ��� नहीं करगा, वो कभी भी अपनी
�मताओं को पूणर्तया समाज क सामने नहीं रख सकता �ोंिक मौ�लक �चंतन क� अ�भ��� �भाषा से
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अ�� िकसी भी भाषा में नहीं हो सकती
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कोई भी भाषा,�सफ सवाद का मा�म ही नही होती ब�� वो उस समाज का आईना होती है, �जससे हमे वहाँ
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क� स�ता और स�ित का पता चलता है । अत: मेर दृि�कोण से हमें भारत क� महान स�ता और स�ित
को दशार्ती हुई िहंदी जैसी मनोरम भाषा में बात करने में तिनक भी सकोच नहीं करना चािहए ब�� िहंदी भाषी
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होने पर गवर् होना चािहए ।
(सवाित दासानी)
विर.�बधक (सिचवीय)
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अिधकार और िज़ममेदारी
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'ये मेरा अ�धकार है । इसे पाने से मुझे कोई नहीं रोक सकता । यह तो मुझे �मलना ही चािहए... ।' ये कछ प्रितिक्रयाए हैं, जो हममें से
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लगभग हर एक ��� द ही बैठता है, जब बात अ�धकार क� हो । वैसे तक क� दृि� से दखा जाए, तो ठीक भी है । �जस पर मेरा हक
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बनता है, जो मेर अ�धकार (Rights) क �ेत्र में आता है, वह न �मल तो गलत है ।
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अ�ा, अब जहाँ अ�धकार को बात क� है, तो जरा एक नज़र �ज�ेदा�रयों पर भी डाल लते हैं । �ज�ेदारी क� बात आते ही 'अ�... अजी
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कर लगे. �जसे दखो मुझे ही करने को कहता है । सब कछ मैं ही करता रहूगा �ा?... कछ ऐसी प्रितिक्रयाए ही रहती हैं हम सब क� । शायद
यह इसान क� िफतरत है, हम चाहते हैं िक हमें हमार अ�धकार �मलते रहें और बदल में कछ न करना पड़ । लिकन यह ग�णत चल नहीं
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सकता ।
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इस सदभर् में �ामी रामतीथर् जी एक बहुत खूबसूरत प्रेरणा दते हैं । वे कहते हैं िक 'Rights' यानी अ�धकार और 'Duties' यानी
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�ज�ेदा�रयों में ठीक वैसा ही स�� है, जैसा िक फल पाने और बीज बोने क बीच में होता है । बीज बोएगे, उसक� दखभाल करगे, तो
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ही फल �मल पाएगा । ब�� कहना चािहए िक तब फल �तः ही �मल जाएगा । आपको माँगना नहीं पड़गा । �ामी रामतीथर् जी कहते हैं
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िक यिद हम 'बीज रूपी �ज�ेदारी ईमानदारी से िनभा ल, तो 'अ�धकार रूपी फल' भी हमें अपने आप �मल जाएगे । अ�धकार माँगने क�
कोई आव�कता रह ही नहीं जाएगी ।
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पर सम�ा यही है िक फल का �ाद सबको चािहए, लिकन बीज लगाने क�, पौधा उगाने क�, उसमें खाद पानी डालने क� मेहनत कोई
नहीं करना चाहता । ऐसे में तो िफर िनराशा ही हाथ लगेगी ।
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