Page 48 - गुज गरिमा
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"वो िच�ी जो म�ने कभी नह� भेजी: मेरे बचपन क े  नाम"


             ि�य बचपन,
             तू कहां चला गया ?  वो िदन कहां खो गए जब सुबह क� धूप िकसी परी क� तरह हमार गालों को सहलाती थी, जब
                                                                                     े
             �खलौनों से भरी दुिनया में खु�शयों क� कोई कमी नहीं थी? जब आँसू �सफ़ �खलौना टटने पर आते थे, और मु�ान क
                                                                                  ू
                                                                                                            े
                                                                         र्
             �लए �सफ़ एक टॉफ़� ही काफ़� होती थी?
                    र्
             अब समझ आया िक �ों कहते हैं – बचपन �ज़ंदगी का सबसे खूबसूरत दौर होता है । �ोंिक यही वो व� था जब न
             कोई �चंता थी, न कोई बोझ, बस खेल, म�ी और बेिफक्र� से भरी �ज़ंदगी ।


             बचपन: एक सुनहरा सपना
             बचपन एक ऐसा ख़ज़ाना है, �जसे जीते जी कभी उसक� क�मत समझ नहीं आती ।
             तब न िकसी से जलन थी, न दुिनया क� िफक्र ।

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                                     ं
             तब चोट भी लगती थी, तो आसू पोंछने क �लए माँ क� गोद �मल जाती थी ।
             तब "खेलने दो" कहने पर हर कोई खेलने दता था,
                                               े
             लिकन आज "समझने दो" कहने पर भी कोई समझता नहीं ।
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             बचपन क िदन भी �ा िदन थे,हर शाम नए �ाब बुना करते थे ।
                    े
             ना कोई �चंता, ना कोई डर,बस हंसते थे हम खुलकर!


             अब समझ आया...
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                                                            ं
                                          ँ
             अब जब मैं �ज़ंदगी क इस मोड़ पर हू, जहाँ �ज़�ेदा�रयाँ कधे पर चढ़कर
             बोझ बन रही हैं, तब एहसास होता है िक वो न�ा बचपन िकतना अनमोल था ।
             बचपन वो िकताब है, �जसे हम �जतनी बार पढ़, ें
             हर बार नया अहसास होता है ।
             काश लौट पाते हम िफर वहीं,जहाँ हर ल�ा खास होता है ।
             तु�ारी ही यादों में खोया, तु�ारा भिव�

                                           े
             वो �चट्ठी जो मैंने कभी नहीं भेजी: मेर खोए हुए बचपन क नाम"
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             िप्रय बचपन,

             कहाँ चला गया तू? वो िदन कहाँ खो गए जब न कोई �चंता थी, न कोई डर, बस हंसी थी,
             म�ी थी, और तेरी गोद में बसी एक दुिनया थी, जो आज भी सबसे �ारी लगती है ।
             अब समझ आता है िक बचपन �सफ़ एक दौर नहीं, ब�� सबसे खूबसूरत एहसास था ।
                                         र्
               जब �ज़ंदगी एक रंग-िबरंगी पतंग क� तरह थी, जो बेपरवाह आसमान में उड़ती थी ।

             पापा क� ऊगली थामे चलना...
                     ँ
                                     ँ
                                                     े
             याद है वो िदन जब पापा क� ऊगली पकड़कर मेल जाया करते थे?
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             हाथ में गु�ार, और आँखों में चमक, जैसे दुिनया क� हर ख़ुशी अपनी हो ।




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