Page 49 - गुज गरिमा
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आज भी वही मेल लगते हैं, पर अब कोई पापा क� ऊगली पकड़कर घूमने नहीं जाता ।
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अब समझ आया िक पापा का साथ �सफ़ सुर�ा नहीं, ब�� दुिनया क� सबसे अनमोल दौलत था ।
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"पापा क कधों पर बैठकर जो दुिनया दखी थी,
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आज ऊचाई पर खड़ होकर भी वैसा सुकन नहीं �मलता ।"
माँ क� ममता में बसा �ार...
तब हर चोट का इलाज एक ही था – माँ क� गोद ।
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चाहे घुटने �छल जाए या मन उदास हो, माँ क आँचल में छपकर रो लने से ही सब ठीक हो जाता था ।
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आज कोई चोट लगती है, तो दवा भी लगाते हैं, खुद को समझाते भी हैं,
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पर वो राहत कहीं नहीं �मलती जो माँ क �शर् में थी ।
"माँ क� गोद में बीता हर ल�ा अमृत था, अब समझ आया िक ज�त ज़मीन पर ही थी ।"
िबना वजह क� शरारतें... याद है कसे घटों छत पर खेला करते थे?
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कसे िबना वजह अपने दो�ों से लड़ते थे, और िफर दो �मनट में गल लगकर भूल भी जाते थे?
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अब झगड़ होते हैं, पर सुलझते नहीं । अब �र�े बनते हैं, पर बचपन जैसी मासू�मयत नहीं ।
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"बचपन क� शरारतें भी स�ी थीं, अब तो लोग मु�राकर भी मतलब िनकालते हैं ।"
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वो सफ़र, जो अब �सफ़ यादों में हैं...
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याद है जब छिट्टयों में नानी क घर जाने क� खुशी अलग ही होती थी?
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रा�े में �खड़क� से बाहर झाँककर हर पेड़ को िनहारना,
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हर नहर को दखकर खुश होना, पापा से �जद करक टॉफ� खरीदवाना,
और माँ का बार-बार कहना, "�ान से खा, गला मत खराब कर लना ।"
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अब सफ़र तो होते हैं, लिकन िदल में वो बेिफक्र� नहीं होती ।
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अब �खड़क� से बाहर दखते हैं, पर आँखों में वो चमक नहीं होती ।
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"अब भी सफ़र करते हैं, पर पहल जैसी म�ज़ल नहीं �मलती ।"
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बचपन को कभी मत खोने दना...
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अगर तुम अभी भी बचपन में हो तो इसे खुलकर जी लना ।
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हर हंसी को जी भर क हंस लना, हर �र�े को बेिफक्र� से िनभा लना,
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हर शरारत को यादों में बसाने लायक बना लना ।
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�ोंिक एक िदन जब बड़ हो जाओगे,
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तो यही याद आँखों में नमी और िदल में सुकन बनकर रह जाएगी ।
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"बचपन क� ग�लयाँ छोड़ आए हम, अब बड़ होकर �सफ़ रा�े दखते रह गए ।"
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तेरी यादों में खोया, तेरा बड़ा हो चुका मैं…
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(खशब सोलकी)
काय�कारी वयवसथापक
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