Page 45 - पूर्वांचल - गुवाहाटी क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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काहिवातीाए �
मिंपाजरा
श्रीीमती रूमी देासं,
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उर्पो प्रबंंधकु (निवंत् त) निपंजरा मं बंंदे थाी एक निचनिड़ेया
निदेलें मं होजारां ख्वंाबं निलेए
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आसमा� की ऊचाई क सप� देेखकरा
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बाेहिटीयं काा संमपा�� उड़े�ा चाहोतेी थाी खुले आसमा� म ं
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खुनिशया निमलेी तेो सीनिमते देायरा मं,
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छेोटीी सी उम्रा मं, सप� ढंोतेी, सप� कांटीं मं बंंधे था ।
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होरा कनिठ� समय म चुपचाप सहोतेी निदेले मं गुूंजतेी थाी निसफी� आवंाज
मातेा-निपतेा की उम्मीदें का बंोझ उठाकरा, निपंजराा चाहोे कोई भाी होो, देदे� तेो वंहों होै,
सप�ं की चादेरा को बंु�तेी औरा सहोेजतेी । अप�ी आजादेी की कीमते का पतेा
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मातेा की सखी, निपतेा का गुौरावं सप�, उम्मीदें, औरा ख्वंानिहोशं,
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होरा रिराश्ते मं, एक �या �ाम बं�ातेी सबं अधूराी राहोे ।
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अप� खुनिशयं को देफी�ाकरा, देूसरां क निलेए जीतेी । समय आया खुले आसमा� म उड़े� का
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निफीरा भाी वंहो मुस्कराातेी, खुदे को भाूले करा निपंजरा क सारा ख्वंाबं टीूटी े
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निकते�ी वंदे�ा छेुपी होै, उसक भाीतेरा जहोा परा कोई सीमा �हों
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होरा त्यागु मं निछेपी होै,उसकी कहोा�ी उसकी असलेी पहोचा� आजादेी होी होै ।
बंनिटीयं का समप�र्ण से, निखलेतेा होै संसारा । ******
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आओं, निमलेकरा, करा होम उ�को सम्मा�,
उ�की त्यागु मं होै, होमाराा जीवं� का मा�।
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