Page 26 - चंदन वाणी - बेंगलुरु क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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प्रिा ....एक ज़ख़्मी सच




                                                                                 े
            पिंचभूत - िायु, जल, अट्ग्न, पृ्िी और आकाश – ये पाूँचों तत्ि अपन आप में त्रियशसॎठतापूिाक
             ै | िायु और जल इस ब्रह्माण्ड क े प्राट्णयों का प्रर्म आधार और आ ार  ै |


                                                                                                     ै
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            मनुष्य की सृत्रष्ट से भी प ल ये पिंचतत्ि उपट्स्र्त र्े और दुयनया क े त्रिनाश क े बाद भी सदि
                े
              ें
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                                                                      े
            र ग| इन शत्रक्तयों पर यनभार  ोन क े बािजूद मनुष्य अपन छठ ज्ञान की शत्रक्त का उकलिंघन
            करता  ै | उलटी सोच का नतीजा... जल अब जलन बन गया  ै - यायन की बना हदया गया
                                                                ु
             ै | जल अभी एक समस्या न ीिं एक मुददा  ै, कछ िगों क े यलए राजनीयतक नारा  ै |
            मनुष्य पृ्िी और जल को अपन कब्ज़ में कद करन का सपना दख र ा  ै |
                                                       ै
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            भयानक कल क े यलए तैयार रह य, अगर  म अभी से स ी कदम न ीिं लत, तो  मारे चारों
                                                                                       े
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            तरफ जल का साया भी न ीिं यमलगा | जल का उपयोग, उसक म त्ि को मन में रखकर
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            करना  ी अर्ापूणा  ै | जल क े बार में  मार अन्धत्रिश्वास और गलतफ यमयों को जड से
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                                                                 े
                                                                                                   े
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            यमटाना अयनिाया  ै| माना ज़मीन में जल कम  ै... लहकन गाहडयों में और बोत्त्लों में कस  ै?
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            क्या  म ज़मीन क े जल से खफा  ै...या हफर पैस से पानी पर प्यार ज़्यादा  ो गया ?
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            जल प्रिा  की त्रिशषता ऐसी  ै - कभी एक नन्  बच्चे क े लुढकत कदम की तर , कभी
            खूबसुरत नताकी की तर , कभी एक कत्रिता की तर , कभी त्रिशाल राक्षस की तर .... कभी
            ख़ामोशी से, कभी शािंयत से, कभी चतुराई से, कभी नादानी से, कभी र स्यपूणा िातािरण पैदा
                                                                      े
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            करक..... ऐस कई गुणित्तािों का यमसाल बन क े र  र  जल को खुद्गज़ा यनयत क े यलए
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            इस्तमाल न ीिं करना चाह ए |
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            भल  ी जल बरग  ो लहकन सा़ि, स्िच्छ और यनष्कलिंक  ै | ऐस पत्रिि जल को गन्दा
                                                                                 े
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            करक काला और मैला न कर | ह सात्मक मतभदों से लाल न कर... क्योंहक अन्य प्राट्णयों
                                         ें
                                                                           े
                                                                                    ें
            का भी जल आ ार और आधार  ै | उन प्राट्णयों का  क़ छीनन का  म कोई अयधकार न ीिं
                                                                            े
                                                          े
             ै | अर्ा (Earth) को अनर्ा (Unearth) बनान की कोयशश करग तो  मारा अिंत तुरत और
                                                                                                िं
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            यनट्श्चिंत  ै |
                                      म जल स जीत   - न की जल  म स |
                                                       ैं
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                                                                                   आर. गुणशखरन
                                                                रणुका गुणशखरन, ि.प्र (स) क पयत
                                                                 े
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