Page 27 - चंदन वाणी - बेंगलुरु क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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                                           लज़र और लैटसा

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                                      ा
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           राघि बगलुरु का एक चाटड अकाउटट र्ा - व्यिट्स्र्त, सतक और हदनचयाा का पक्का ।
                                                                     े
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           दूसरी ओर, सुरयभ एक म त्िाकािंक्षी एमबीए (फाइनस) ग्रजुएट र्ी, जो मुिंबई में इन्िस्टमट
                                                                                                 े
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           बैंहकग में काम करती र्ी। उस अयनट्श्चतता और  ाई-स्टक्स फसलों में मज़ा आता र्ा।
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           दोनों की मुलाकात जयपुर में एक कट्ज़न की शादी में  ुई - पररचय से न ीिं, बट्कक एक ग़लती
           स। राघि कॉल लन क े यलए बा र यनकला और ग़लती से सुरयभ क े कमर में चला गया । ि
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           दपाण क े सामन खडी  ोकर दुक न क े यलए डािंस की प्रैट्क्टस कर र ी र्ी, उसे खबर भी न ीिं
                                                                            ु
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           र्ी हक कोई अिंदर आ गया  । राघि हठठक गया। सुरयभ मुडी। कछ पल की ख़ामोशी... हफर
            सी। य  अजीब र्ा, अनजाना र्ा, लहकन अजीब तर  से आकषाक भी।
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           अगल दो हदनों तक िे बार-बार आमन-सामन आत र  - कभी म दी में, कभी सिंगीत में, और
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           कभी उन ररश्तदारों से बचत  ुए जो जोहडयािं बनान में व्यस्त र्े। उनकी बात तीखी र्ीिं, लहकन
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                                                                                                   े
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           रोचक र्ीिं — अकसर ब सों में बदल जातीिं, फाइनस, एयर्क्स और जीिन क े चुनािों पर ।
           राघि को सुरयभ का आत्मत्रिश्वास भाता र्ा, और सुरयभ को राघि की शािंत सटीकता ।
           कट्ज़न की शादी क े बाद भी उनका ररश्ता न ीिं टूटा । ़िोन कॉकस एक आदत बन गए । मुिंबई
                                                                            े
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           और बगलुरु क े बीच की दूरी क े बािजूद, िे कछ स्र्ायी बना र  र्े - साझा प्लयलस्वस क े
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           ज़ररए, लिंबी चैवस क े ज़ररए, जो उनकी ट्ज़दगी को जोडती र्ीिं । लहकन प्यार यसफ जुडाि न ीिं
            ै - य  धैया और मजबूती की परीक्षा भी  ै ।
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           राघि का पारपररक पररिार सुरयभ की  ाई-प्रोफाइल नौकरी और स्ितिंि जीिनशैली को स जता
                                                                                                  िं
           से स्िीकार न ीिं कर पा र ा र्ा । ि ीिं सुरयभ क े माता-त्रपता को डर र्ा हक राघि का पारपररक
                                                                 े
           सोच िाला स्िभाि उसकी म त्िाकािंक्षाओिं क े सार् मल खा पाएगा या न ीिं । य  त्रिरोध
           प्रत्यक्ष न ीिं र्ा, लहकन लगातार मौजूद र्ा — मुलाकातों को टालना,  ककी-सी नाराज़गी,
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           भािनात्मक दबाि ।
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           हफर भी, दोनों डट र । उन् ोंन एक-दूसर को बदलन की कोयशश न ीिं की - बट्कक सार्-सार्
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           बदल । राघि ने स जता अपनाना सीखा, और सुरयभ ने सिंरचना की अ यमयत को समझा ।
           उन् ोंन इतज़ार करना चुना - अनुमयत का न ीिं, समझ का ।
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           आट्ख़रकार, उन् ोंन शादी कर ली । न कोई भव्यता, न कोई नाटक - बस एक सादासा
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           समारो , कछ करीबी दोस्त और दो पररिार, ट्जन् ोंन अिंततः ि ी दखा जो इन दोनों ने दखा
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           र्ा: पूणाता न ीिं, बट्कक सिंभािना ।
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