Page 59 - संगम - चेन्नई क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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          सगम - ततीय स�रण /  �सतबर - 2025
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           “कल ही शाम को जल स छटा �,” उसन बताया I
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           म�न उसस कहा, “आज हमार घर म एक ज�री काम ह, म उसम लगा �आ � I आज तम जाओ, िफर आना I”
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           वह उदास होकर जान लगा I दरवाज क पास �ककर बोला, ज़रा ब�ी को नहीं दख सकता ?”
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           शायद उस यही िव�ास था िक िमनी अब भी वसी ही ब�ी बनी �ई ह I वह अब भी पहल की तरह “काबलीवाल,
                                                                                          े
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           ओ काबलीवाल” िच�ात �ए दौड़ी चली आएगी I उन दोनों की उस परानी हसी और बातचीत म िकसी तरह की
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           �कावट न होगी I म�न कहा, “आज घर म ब�त काम ह I आज उसस िमलना न हो सकगा I”
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           वह उदास हो गया और सलाम करक दरवाज स बाहर िनकाल गया I
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                                                                                                              े
           म सोच ही रहा था िक उस वापस बलाऊ I इतन म वह �य ही लौट आया और बोला, “यह थोड़ा-सा मवा ब�ी क
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           �लए लाया था I उस द दी�जएगा I”
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           म�न उस पस दन चाह पर उसन कहा, “आपकी ब�त महरबानी ह बाब साहब ! पस रहन दी�जए I” िफर जरा
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           ठहरकर बोला, “आपकी जसी मरी भी एक बटी ह I म उसकी याद कर-करक आपकी ब�ी क �लए थोड़ा-सा मवा
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           ल आया करता � I म यहा सौदा बचन नहीं आता I”
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           उसन अपन कत की जब म हाथ डालकर एक मला-कचला मड़ा �आ कागज़ का टकड़ा िनकाला और बड़ जतन
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           स उसकी चारों तह खोलकर दोनों हाथों स उस फलाकर मरी मज़ पर रख िदया I दखा िक कागज़ क उस टकड़              े
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           पर एक न� स हाथ क छोट-स पज की छाप ह I हाथ म थोड़ी-सी का�लख लगाकर, कागज़ पर उसी की छाप ल               े
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           ली गई थी I अपनी बटी िक इस याद को छाती स लगाकर रहमत हर साल कलक� क गली-कचों म सौदा बचन               े
                                                                                                           े
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           क �लए आता ह I
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           यह दखकर मरी आख भर आई I सबकछ भलकर म�न उसी समय िमनी को बाहर बलवाया I िववाह की परी पोशाक
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           और गहन पहन िमनी शरम स �सकड़ी मर पास आकर खड़ी हो गई I
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                े
           उस दखकर रहमत काबली पहल तो सकपका गया I उसस पहल जसी बातचीत न करत बना I बाद म वह हसत                  े
                                                                                                           ं
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                                  े
           �ए बोला, “ल�ी ! सास क घर जा रही ह �ा ?”
                                               ै
           िमनी अब सास का अथ समझन लगी थी I मार शरम क उसका मह लाल हो उठा I
                                                                    ुँ
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                                                   े
           िमनी क चल जान पर एक गहरी सास भरकर रहमत ज़मीन पर बठ गया I उसकी समझ म यह बात एकाएक ��
                                                                                          �
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           हो उठी िक उसकी बटी भी इतन िदनों म बड़ी हो गई होगी I इन आठ वष� म उसका �ा �आ होगा, कौन जान ?
                                               �
           वह उसकी याद म खो गया I
                           �
            �
           म�न कछ �पए िनकालकर उसक हाथ पर रख िदए और कहा, “रहमत ! तम अपनी बटी क पास दश चल जाओ I
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