Page 58 - संगम - चेन्नई क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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सगम - ततीय स�रण /  �सतबर - 2025
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           रहमत हसता �आ कहता, “हाथी I” िफर वह िमनी स कहता, “तम ससराल कब जाओगी?”
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           इसपर उलट वह रहमत स पछती, “तम ससराल कब जाओग ?”
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                                                       ु
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           रहमत अपना मोटा घसा तानकर कहता, “हम ससर को मारगा I”  इस पर िमनी खब हसती I
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                                                                         े
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           हर साल सिदयों क अत म काबली अपन दश चला जाता I जान स पहल वह सब लोगों स पसा वसल करन म लगा
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           रहता I उस घर-घर घमना पड़ता, मगर िफर भी प्रितिदन वह िमनी स एक बार िमल जाता I
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           एक िदन सवर म अपन कमर म बठा कछ काम कर रहा था I ठीक उसी समय सड़क पर बड़ ज़ोर का शोर सनाई
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           िदया I दखा तो अपन रहमत को दो �सपाही बाध �लए जा रह ह I रहमत क कत पर खन क दाग ह और �सपाही
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           क हाथ म खन स सना �आ छरा I
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           कछ �सपाही स और कछ रहमत म मह स सना िक हमार पड़ोस म रहन वाल एक आदमी न रहमत स एक चादर
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           खरीदी थी I उसक कछ �पए उस पर बाकी थ, �ज� दन स उसन इनकार कर िदया था I बस, इसी पर दोनों म बात
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           बढ़ गई और काबली न उस छरा मार िदया I
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           इतन म “काबलीवाल, काबलीवाल” कहती �ई िमनी घर स िनकाल आई I रहमत का चहरा �ण भर क �लए �खल
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           उठा I िमनी न आत ही पछा, “तम ससराल कब जाओग ?” रहमत न हसकर कहा, “हा, वहीं तो जा रहा � I”
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           रहमत को लगा िक िमनी उसक उ�र स प्रस� नहीं �ई I तब उसन घसा िदखाकर कहा, “ससर को मारता पर �ा
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           क�, हाथ बध �ए ह I
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           छरा चलान क अपराध म रहमत को कई साल की सज़ा हो गई I
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           काबली का �ाल धीर-धीर मर मन स िबलकल उतर गया और िमनी भी उस भल गई I
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           कई साल बीत गए I
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                                                                        ै
           आज मरी िमनी का िववाह ह I लोग आ-जा रह ह I म अपन कमर म बठा �आ खच का िहसाब �लख रहा था I इतन           े
                                                        �
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           म रहमत सलाम करक एक ओर खड़ा हो गया I
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                                                                                                    ं
                                                                                              ु
           पहल तो म उस पहचान ही न सका I उसक पास न तो झोली थी और न चहर पर पहल जसी खशी I अत म उसकी
                                                                                                        �
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           ओर �ान स दखकर पहचाना िक यह तो रहमत ह I
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                                                       ै
           म�न पछा, “�ों रहमत कब आए ?”
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                ू
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