Page 64 - पूर्वांचल - गुवाहाटी क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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काहिवातीाए     �







                भीडि मं अका े ला                                     नामस्तीे संरज !
                                                                                   ू












                                                रााजीवं छत्रीी                          संुश्रीी प्रत्यूषाा र्पोाठकु, कुक्षा-5
                                                        े
                                                   एमटीएसं                       �ानित� - रााम प्रसंादे र्पोाठकु, एमटीएसं
                होजारां चेहोरा को देेखा होै मं�,
                         े
                                     े
                    े
                अप� आस पास �हों देेखा कोई,
                                                                          े
                                                                     �मस्ते सूराज !
                होरा कोई देौड़े मं शानिमले होै
                                                                     �मस्ते सूराज, आसमा� म, ं
                                                                          े
                परा सु��वंालेा कोई �हों।
                       े
                                                                                             ँ
                क ं धे से क ं धा छेूतेा होै मगुरा                    सु�होराी चमक इते�ी गुम� औरा ऊची,
                                                                                े
                                                                          े
                रिराश्तें की कोई अनिहोमयते �हों                      जागुते फी ू ले, पड़े औरा मधुमनिक्खया, ँ
                कई शब्दे हों लेबंं परा                               सारा समुद्रं परा �ाचतेी राोश�ी।
                                                                        े
                बंयां �हों करा पाते  े                               होम तेुम्‍होाराी धूप भाराी राोश�ी मं खेलेते हों,
                                                                                                 े
                         े
                      ं
                भाीड़े म अकलेा होँँ थाम-सा गुया होँं
                                                                     सुबंहो से लेकरा ढंलेतेी शाम तेक,
                                                                              े
                सबंक साथा होोते होुए भाी तेन्होा होँं मं।
                    े
                            े
                                                                     सूराज, चमक� क निलेए शुनि�या,
                                                                                  े
                                                                                े
                शोरा राोश�ी सबंक ु छे तेो होै मेरा पास
                                      े
                                                                     गुमी औरा खुश�ुमा राोश�ी देे� क निलेए ।
                                                                                           े
                                                                                             े
                             े
                बंस कोई समझ�वंालेा �हों होै
                कभाी सोचा थाा साथा चलेगुे सतेरांगुी मं डुबंगुे
                                               ं
                                   ं
                परा होरा मोड़े परा साया होी राहोा।                                      *****
                भाीड़े की देुनि�या मं कोई अप�ाप� �हों
                इस अकलेप� से अबं कोई अ�जा� �हों।
                        े
                      े
                                  *****

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