Page 26 - आवास ध्वनि - सातवाँ अंक
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आवास न
2025-26
टपण भाषा नी त काम काज म ह ी का गामी योग अप त प म
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न बढ़न और राजभाषा घो षत होन क 76 वष क बाद
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भाषा नी त क नधारण क श म ही गलती ई । भी ह ी क उप ापण त क लए हमारी
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ाधीनता आ ोलन और भारत जागरण का नत मान सकता, अ जी क त अ मोह, क ीय
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करन वाल सभी नताओं न रा भाषा क प म ह ी सरकार क व र कायपालक और रा ीय नत का
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को ीकार कया था क आजादी क बाद कसी भी ह ी क त उप ापण वहार तथा आ व ास
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राजनता न यह कहन का साहस नह कया क ह ी और ा भमान क कम काफ हद तक ज ेदार है ।
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स ा और वहार म भारत क राजभाषा होगी । ह ी सवधा नक प स भारत क राजभाषा ह। ै
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ह ी क इस त का एक मह पण कारण सक ण ा ीयता और ानीय भाषावाद क कारण
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सरकार क भाषा नी त है । ह ी आज अनुवाद क राजभाषा ह ी क अनदखी नह क जानी चा हए।
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भाषा बन कर रह गई ह । सरकार जस प म इस े रा हत म ा का भी हत न हत और स न त
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लान और लाग करन का य कर रही ह वह होता ह। मरे वचार स राजभाषा क सम ा क े
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भाषाओं क ाभा वक वकास क या क े समाधान म हमारा रा ीय और ा ीय नत दोन
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अनकल नह ह । मलकर मह पण भ मका नभा सकत ह । भाषायी
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हत रा ीय हत स ऊपर नह ह। रा ीय हत स न त
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ह ी का वकास लोक भाषाओं स जड़कर कया रहेगा तो भाषायी ह ी को संर ण यंमेव मलता
जाना चा हए जब क इसका वकास वहार म अ जी रहगा । हमारे ा ीय नत , वशषकर ह ीतर भाषी
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स जड़कर करन क को शश क जाती रही ह । यही रा को भी सपक भाषा क प म अ जी क े
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कारण ह क व भ वषय पर बनी श ाव लया, ँ मकाबल ह ी क ापकता को ीकार कर-इस
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श कोश आ द ावहा रक न होकर क ठन और दशा म कछ ठोस कदम उठान चा हए। इसस राजभाषा
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दु ह बन गई ह । हमारे दश क 90 तशत जनता क े ह ी और सब धत रा क राजभाषा दोन का
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च न और अ भ का मा म उसक वकास होगा और भाषायी तथा सां तक आदान-
लोकभाषाय ह। राजभाषा ह ी क लए सहायक दान बढ़ेगा ।
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सा ह क सरचना करत समय इस त क परी तौर
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पर उपे ा क गई है । मौ लक वचार क या उसी
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भाषा म चल सकती ह जसम समाज क अनभव और
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जीवन क या चलती ह । भारत क 90 तशत
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जनता का जीवन और अनुभव लोकभाषाओं म
सपा दत होता ह । अतः लोकभाषाओं क उप ा करक े
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उसस जड़ी भाषा का वकास करन क क ना नह
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क जा सकती ह । अ जी को पठन पाठन क , ान
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क भाषा क प म तो ीकार कया जा सकता ह पर
इसे भारतीय जन जीवन, सां ृ तक च न और
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भारतीय शासन क राजकाज क भाषा क प म
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अपनाना अनाव क ही नह आ घाती भी ह । हमारा
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शासक वग आज भारतीय सम ाओं क बारे म अ जी
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म सोचता ह और प म स रणा लता ह, समाधान
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तलाशता है । इसी सोच के कारण राजभाषा होकर भी
ह ी और अ भारतीय भाषाओं क त आज
इतनी दयनीय है । इस दशा म अपे त ग त देश क
श ा णाली म दशकाल क अनसार आव क
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प रवत न करके ह ी और अ भारतीय भाषाओं को
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श ा का मा म बनाकर ही क जा सकती ह ।
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ऊपर कय गय व षण स यह ह क सरकारी
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