Page 36 - संकल्प - दसवां अंक
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दसवी  ं अंक



                                        राग दरबारी - एक समी ा



            राग दरबारी एक राजनीितक  यं य है जो  वतं ता क  बाद क  भारतीय समाज को दशा ता है जहाँ अपराधी, नौकरशाह और राजनेता  क

            बीच सांठगांठ का सामना करने पर बुि जीवी असहाय हो जाते ह । ऐितहािसक  प से, उप यास नेह  की मृ यु क  4 साल बाद  कािशत
            हुआ था। िवकास क  बारे म  नेह  का दृ  टकोण बहुत आदश वादी था। उनकी मृ यु, कई लोग  क  िलए आदश वाद क  ताबूत म  एक कील थी
            और अिधक से अिधक लोग यह महसूस कर रहे थे िक जमीनी  तर पर, ये आदश  उतने चमकदार नह  थे िजतने िदखते थे। इसक

            अनुवादक िगिलयन राइट क  अनुसार, उप यास शु ला क  यूपी म  खुद क  क छ अनुभव  पर आधा रत था। यह अपने मजािकया  यं य क
            मा यम से एक औसत भारतीय नाग रक की भावना , क  ठा  और िनराशा  को पकड़ता है। यह जो िवचार जगाता है वह नेह  क  बाद
            क  िनंदकवाद की कथा क  अनु प है। शु ला खुद इस उप यास को 1950 क  दशक म   ामीण जीवन पर िहंदी लेखन क  िवपरीत बताते ह ,
            जो 'या तो दुख और शोषण पर जोर देता है' या 'सुंदर देहाती िच '   तुत करता है। िशवपालगनी गांव िब क ल वैसा ही करता है, िजसम

            मायचवािलयन डॉन और उसका समूह है जो गांव को िनयंि त करता है। लेखक हर उस साम ी म  हा य ढ  ढता है जो उसक  उपा यान  क
            कथानक को एक साथ रखता है। िजनम  से अिधकांश गांव म  मौजूद सां क ितक िवसंगितय  से उ प  होते ह ।


            उप यास रंगनाथ नामक शोध छा  क  अनुभव पर आधा रत है जो उ र  देश क  िशवपालगंज गांव म  अपने चाचा वै जी क  साथ रहने

            आता है। गांव म  उसे   टाचार, आपसी लड़ाई,  यवहारवाद, छोटी-मोटी  ित ंि ता, दलबदल और जुगाड़ से भरे गांव क  जीवन से प रिचत
            कराया जाता है। लेखक इस त य की ओर भी इशारा करता है िक गांव क  अिधकांश लोग  वतं ता से पहले की  था  से आगे बढ़ना नह
            चाहते ह , वे आधुिनक  णािलय  को अपनाने क  बजाय उन मानदंड  और मू य  से िचपक  रहना पसंद करते ह  िजनसे वे प रिचत ह । यह
            इस बात की  या या करता है िक वे िश ा  णाली और उसक  प रणाम  क  बारे म  इतने संशयी और आलोचना मक  य  ह । यह इस बात की

            ओर भी इशारा करता है िक हम  अं ेज  से िवरासत म  जो राजनीितक और  शासिनक  यव था िमली थी, वह एक सा ा य चलाने क  िलए
            बनाई गई थी, और इसिलए यह भारत जैसे जिटल  वतं  देश को चलाने क  िलए तनावपूण  और अपया  त हो गई।


            यह कहानी भारत क   ामीण जीवन म  सामािजक-राजनीितक और आिथ क   थितय  को दशा ती कहािनय  की एक  ृंखला है। राग दरबारी

            (दरबार का राग) शीष क से ता पय  है िक क से एक राजनेता अपने दरबार गांव म  हर िकसी को अपनी धुन (राग) पर नचाता है। यह  यं य
            की शैिलय  को  ामीण कथा सािह य और उ लेखनीय वा तिवकता क  साथ िमलाकर उ र-औपिनवेिशक भारत की नाजुक सामािजक-
            राजनीितक   थितय  म  राजनीितक   टाचार को दशा ता है। रंगनाथ एक ऐसा  य  त है िजसक  उ  आदश  ह  और का या मक  याय म
            दृढ़ िव वास है और वह 'गांव क  िगरोह' क  पाखंड को समझने क  िलए संघष  करता है। उप यास की पहली घटना रंगनाथ क  एक  क

             ाइवर क  साथ िल ट मांगने से शु  होती है, जो लेखक क  श द  म  गांव की सड़क  का “बला कार” करता है। जब पुिलस उसे रोकती है
            और उससे पैसे  ठने की कोिशश करती है, तो वह दूर से देखता है िक वे उसे उसकी लापरवाही से गाड़ी चलाने क  िलए दंिडत कर रहे ह
            और साथ ही उनकी तुलना डक त  से कर रहे ह  (िजस तरह से उ ह ने  क क  कागजात मांगे थे)। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हम

            देखते ह  िक उसका भोलापन,  याय म  उसका िव वास और उसक  आदश  धीरे-धीरे ट टते जाते ह  और वह एक मा  दश क बनकर रह जाता
            है जो  यव था क  पद  क  भीतर खो जाता है। उसे नेता  क  रा  वादी आदश  का एहसास होता है जो देश म  नाटकीय  प से िवफल हो गए

            ह ।रंगनाथ क  चाचा वै जी एक धुरी ह  िजनक  इद -िगद  गांव  की स ा संरचनाएँ बनी हुई ह । वे सभी सामािजक-आिथ क सौद  की देखरेख
            करते ह  और कचहरी, थाने, पंचायत , सहकारी सिमितय  और  क ल और कॉलेज म  गाँव की नौकरशाही को िनयंि त करते ह । वै जी
            और रामाधीन दोन  ही गाँव म   ा ण और ठाक र जाितय  क  दो लोग ह  और वे दोन  दो स ा  लॉक  का गठन करते ह । रामाधीन वै जी
            का  ित ं ी है जो कॉलेज और गाँव की पंचायत पर क ज़ा करना चाहता है। वह नशीले पदाथ  क   यापार से पैसा कमाता है। वे दोन  अपने

            आदिमय  क  ज़ रए दरबार पर हावी होने की कोिशश करते ह ।

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