Page 6 - चंदन वाणी - बेंगलुरु क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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          इस राजििंश क े सिंस्र्ापक राजकमार "सला" र्े। “ ोयसला” ििंश क े पीछ एक पौराट्णक कर्ा
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                                                                        े
          जूडी  ुई  । एक हदन राजकमार क े यशक्षक जब पाठ पढा र  र्े उसी समय ि ािं एक बाघ
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                                                                 े
          झाहडयों से आ गया, तुरन्त गुरुजी ने " ोय सला" क क राजकमार का ध्यान आकत्रषात हकया
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          ट्जसका अर्ा र्ा “प्र ार करो”। राजकमार ने तुरत  ार् से  ी बाघ को मारकर, गुऱूजी हक रक्षा
                                                        िं
          की। य  प्र ार  ी बाद में  ोयसला ििंश का प्रतीक बन गया।


















          कई शासकों की तर , त्रिष्णुिधान एक प्रयसद्ध राजा र्ा। उनकी धमापत्नी श्रीमती शािंतला एक
          ब ुत सुिंदर और नावय शास्त् क े पिंहडताइन र्ी और खुद अद्भुत नताकी र्ी| ि  नृत्य कला
          और शास्त् की अनुपम उद ारण र्ी| उनको अपन  र एक नतान की मुद्रा को प्रयतमा या मूती
                                                          े
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          क े ऱूप में बनान का ख्याल आया और उन् ोन राजा त्रिष्णुिधान से इसक बार में चचाा की
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          और दोनों ने उस कला क े यलए एक मिंहदर बनान का यनणाय यलया। शािंतला ने उनक गुरु
          जक्कण्णा आचाया से मिंहदर बनान का यनिदन हकया। लहकन आचाया ने मूयता बनात समय,
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          अन्य कोई मनुष्य सामन न आन की एक शता रखी और शता को पूरा करन क े यलए रानी
           ोकर भी शािंतला ने खुद गुऱूजी की सिा की।
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          आचाया ने नृत्य मुद्राओिं की मूयतायाूँ इतनी जीििंत बनायी, हक दखत  ी मनुष्य आश्चयाचहकत
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           ो जाता  ै हक पत्र्रों में इतनी जीििंत और आकषाक मूयता कस बना सकत  । इन मूयतायों
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          की भव्यता और सुिंदरता क्षण भर में  ी मन को मो  कर, हकसी दूसर  ी दुयनयािं में ले जाती
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