Page 35 - लक्ष्य - चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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शीष क:
मेर शु आती दन
हडको, चंडीगढ़ े ीय काया लय म
नई नौकरी, नया शहर और नया द तर—मन म वही उ साह और घबराहट का ा सक पैक ज
था। हडको चंडीगढ़ े ीय काया लय म पहला दन मानो कसी परी ा क जैसा लगा। हाथ म
फाइल , चेहर पर मु कान और भीतर ही भीतर यह डर क कह चाय तक भी खुद लेनी न पड़ ।
ऑ फस क पहली मुलाक़ात ट बल और क स से ई—ट बल पुराना यो ा, और क स का तो
ऐसा हाल था क उस पर बैठकर लगता था मानो "झूलेलाल" क क पा बरस रही हो। क यूटर ने
भी वागत कया, ले कन पासवड डालते-डालते म ने समझ लया क ऑ फस क सबसे बड़ी
परी ा वही ह ।
टाफ से मलते ही लगा जैसे म कसी पुराने प रवार म दािख़ल हो गया । कोई पूछता—"ना ता
कया?" तो कोई कहता—"नए हो, ट शन मत लेना, यहाँ काम कम और चाय यादा चलती
ह ।“
पहले ह ते तक तो म फाइल म उलझकर सोचता रहा क ये कागज़ यादा मज़बूत ह या मेरी
समझ। ले कन धीर -धीर अंदाज़ा हो गया क यहाँ काम क साथ-साथ ह सी- ठठोली भी खूब
चलती ह । कभी कोई शेर सुना देता, तो कभी कोई मी ट ग म ही " ज़ मा टर" बन जाता।
और हाँ, ऑ फस क घड़ी भी बड़ दलच प अंदाज़ म चलती ह —छ: बजते ही सबक हाथ
अपने-अपने बैग क ओर ऐसे दौड़ते ह मानो ओलं पक रले र स म ह सा ले रह ह । नए-नए
कम चारी को तुर त पता चल जाता ह क "वक -लाइफ़ बैल स" क असली ड ी यह मलती ह ।
क ल मलाकर मेर शु आती दन ऐसे रह जैसे कसी नए छा का हॉ टल म पहला
ह ता—अजनबीपन, मज़ेदार क से और ढ र सीखने का मौका। और अब तो यह द तर मुझे
"ऑ फस" से यादा "घर" जैसा लगने लगा ह ।
त ण
श ु अ धकारी (प र)
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