Page 54 - आवास ध्वनि - सातवाँ अंक
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आवास न
2025-26
सरकारी कायालय म अनवाद क उपयो गता
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हमारे दश म अनवाद का मह ाचीन काल स ही क सरकार क कायालय , सावज नक
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रहा ह। भारत जस ब भाषी दश म अनवाद क उप म , स ान और त ान म राजभाषा
उपयो गता य स ह। भारत क व भ दश क े भाग क ापना ई जहा अनवाद काय म
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सा ह म न हत मलभत एकता क प को श त ह दी अनवादक एव ह दी अ धकारी
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नखारन क लए अनवाद ही एक मा अचक साधन काय करत ह। आज रोजगार क म अनवाद
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ह। 21व शता ी क मौजदा दौर म अनवाद एक सबसे आगे है। त स ाह अनुवाद से संबं धत
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अ नवाय आव कता बन गया है। भारत जैसे जतन पद यहाँ व ा पत होत ह अ कसी भी
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ब भाषा-भाषी दश क जन-समदाय क बीच अत: म नह । ‘अनवाद एक मह पण उपकरण
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स षण क सवाहक क प म अनवाद का ह जो दु नया को करीब लाता ह और व भ
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ब आयामी योजन सव व दत ह। य द आज क इस स तय , वचार और ान को एक दूसरे क े
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यग को ‘अनवाद का यग’ कहा जाए तो कोई साथ साझा करन म मदद करता ह।‘
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अ तशयो नह होगी, क आज जीवन के हर
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म अनवाद क उपयो गता को सहज ही स भारतीय स वधान क आठव अनसची म 22
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कया जा सकता ह। दो भ स तय को भाषाओं को मा ता दी गई ह। य भाषाए ँ
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नजदीक लाकर एक स म परोन म अनवाद क ह: अस मया, बगाली, गजराती, ह दी, क ड़,
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महती भ मका को नकारा नह जा सकता ह। ह ी क ीरी, क कणी, मलयालम, म णपुरी, मराठी,
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अब वसाय- ापार क , सचार-त क तथा नपाली, उ ड़या, पजाबी, स त, स धी, त मल,
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शासक य व ा क भाषा बन रही ह। इसक लए तलु ग, उदू, बोडो, डोगरी, म थली और सथाली।
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ज री है क ड जटल मा म से अं ेजी तथा राजभाषा वभाग, गह म ालय, भारत सरकार
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भारतीय भाषाओं म अनवाद क या को तज न शास नक काय म भारतीय भाषाओं क े
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तथा अनुवाद के र म सुधार कया जाए। उपयोग को बढ़ावा दन और वदशी भाषाओं क े
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भाव को कम करन क उ स ‘भारतीय
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अनवाद एक सत ह जो भाषायी सीमाओं को पार भाषा अनभाग’ क ापना क ह। क ीय गह
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करके भारतीय च न और सा ह क म ी ी अ मत शाह न 6 जन 2025 को नई
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सजना क चतना क सम पता क साथ-साथ, द ी म इस अनभाग का उ ाटन कया। इस
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वत मान तकनीक और वै ा नक युग क अपे ाओं पहल के मा म से राजभाषा वभाग को एक
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क प त कर हमारे ान- व ान क आयाम को पण वभाग का दजा ा आ ह, जो भारतीय
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दश- वदश म सश करती ह। दु नया क जन दश भाषाओं क सर ण और सवधन क दशा म
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म व भ जा तय एव स तय का मलन आ एक मह पण कदम ह। भारतीय भाषाए हमारी
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ह वहा सामा सक स त क नमाण म अनवाद क स त क आ ा ह और हमारी स त ही
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मह पण भ मका रही ह। आज क भारतीय स त भारत क आ ा ह। उ न यह भी कहा क जब
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जस हम सामा सक स त कहत ह उसक नमा ण तक हमारी सोच, व े षण और नण य ले ने क
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म हजार वष क व भ धम , मत एव व ास क या हमारी मातभाषा म नह होगी, तब तक
साधना छपी ई ह। इन सभी मत एव व ास को हम अपनी पूण मता का उपयोग नह कर
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आ सात कर जस भारतीय स त का नमाण सकते। उ ने सभी ानीय भाषाओं को सश
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आ है उसके पीछे अनुवाद क मह पूण भू मका बनाने क आव कता पर बल दया, जससे
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अस द ह। स वधान म ह दी को राजभाषा का दजा भारत को उसक शा त गौरवशाली त तक
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दया जान क प चात प ंचाया जा सके ।
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