Page 58 - आवास ध्वनि - सातवाँ अंक
P. 58
आवास न
2025-26
अनवाद क या
ु
अनवाद एक ज टल और कला क या ह जसम करता ह, तब अनवाद मौ लक लगता ह। ोत पाठ क
ै
ु
ु
ै
ै
े
े
एक भाषा ( ोत भाषा) म लख गए पाठ को दूसरी व षण म पाठ को ोतभाषा क सरचना तथा व
े
ं
े
भाषा (ल भाषा) म इस तरह स प रव त त कया वषय क र पर समझना होता ह। पाठ क स श
े
े
ै
े
ू
ै
ं
ै
जाता ह क मल अथ, शली और सदभ बरकरार रह। े तक प चन क लए इन र का उ ाटन आव क
े
ं
े
े
े
यह कवल श को एक भाषा स दूसरी भाषा म होता ह। क पाठ का अथ ही नह , उसका अ भ ाय
ै
ृ
ै
े
ं
बदलन का काम नह ह, ब यह सा तक, भी भा षक अ भ और उनक व ास म छपा
े
े
सामा जक और भाषाई बारी कय को समझन और होता ह। अथ और अ भ ाय कभी सकत म तो कभी
े
ं
ै
उ सही ढंग से ुत करने का एक यास है। कहना सरचना म और कभी-कभी योग तथा जना म
ं
ं
ु
ै
ृ
न होगा क अनवाद एक सजना क काय ह और न हत होत ह। अतः इ समझन क लए पाठ का
े
े
े
इसम अनुवादक क भू मका अ मह पूण होती पठन-मनन आव क होता ह, तभी अनवाद हो पाता
ै
ु
ह। उस एक ही समय म पाठक, भाषा व षक, वषय ह जस :-
े
े
ै
ै
े
ै
ू
े
ँ
वशष तथा भाषी क भ मकाए नबाहनी पड़ती ह।
े
ु
फल प, उसक भू मका ब आयामी होती है। (रमश पर बदलाव का) रंग चढ़ना-धन सवार
इस लए अनुवादक से ोत और ल -दोन भाषाओं होना।
ु
े
े
ै
े
े
े
े
क मम होन क अप ा होती ह। क य सारी (प लस को दखत ही चोर का) रंग उतरना हत भ
ु
ँ
मताए अथवा इनस स त अ मताए अनवाद होना, डरना।
े
ँ
े
ु
े
क या को भा वत करती ह और अ तः इनका (कायकता का नता क) रंग म रंगना- अनयायी
अ ा-बरा असर अनवाद म दखाई दन लगता ह। ै होना, आ ावान होना।
े
ु
े
ु
े
शायद इसी लए अनवाद को भाषा वहार क एक (नता का बार-बार) रंग बदलना- दलगत,
ु
े
ै
सजना क या भी माना गया। वचा रक आ ा बदलत रहना।
ृ
ं
ै
(सभा म) रंग म भग होना- व पदा होना।
ु
अनवाद क या क चरण श ावली और अनसधान
े
ु
ं
ु
े
ु
एक सफल अनवाद कई चरण स होकर गजरता ह। ै एक बार जब अनवादक पाठ को समझ लता ह, तो वह
ै
े
ु
यह या, चाहे वह मानव ारा क जाए या मशीन
अनुवाद के लए आव क श ावली और तकनीक
ु
ारा, कछ न त चरण का पालन करती ह: ै श का पता लगाता ह। यह चरण वशष प स तब
ै
े
े
मह पूण होता है जब पाठ कसी व श े (जैसे
ं
े
ू
ं
ोत पाठ का व षण च क ा, कानन या ौ ो गक ) स सब धत हो।
े
ू
ु
ु
ै
े
यह अनवाद का सबस मह पण चरण ह। अनवादक
को पहल मल पाठ को गहराई स समझना होता ह। ै
े
े
ू
इसम के वल शा क अथ ही नह , ब लेखक का
इरादा, ल त पाठक वग, पाठ का टोन और शली भी
ै
ै
ु
ू
ु
शा मल ह। अनवादक को पाठ म मौजद महावर ,
कहावत , सां ृ तक संदभ और तकनीक श ावली
ै
को पहचानना होता ह। य द पाठ म कोई अ ता ह, ै
े
े
तो उस दूर करन क लए शोध या लखक स सपक
े
े
े
ं
े
करना पड़ सकता ह। जब अनवादक श क आवरण
ु
ै
को भदकर स भावनाओं क र पर प चता ह और
ै
े
े
ू
ँ
वहाँ से अपनी भाषा म अ भ होने का य
58