Page 60 - आवास ध्वनि - सातवाँ अंक
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आवास न
2025-26
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बचपन क सनहरी याद
हर कसी का अपना बचपन होता ह और उस बचपन लुका– छपी
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क याद (Childhood memories) भी होती ह। ऐसी
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बचपन म इस खल को खलन का अपना ही आनद था।
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ही कई याद मरी भी ह और आपक भी। हम सबन े
हम ब क टोली एक जगह इक ा होकर इस खेल
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बचपन को जीया ह। इन मधर याद म म ी-पापा,
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को खलत थ। टोली क सभी सद छप जात थ और
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भाई-बहन, यार-दो , ल क दन, आम क पड़ पर
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एक सद सभी को ढूंढता था। कभी हम ब त
चढ़कर चोरी से आम तोड़ना शा मल ह । बचपन म
आसानी से मल जाते थे, तो कभी कबार अपने साथी
हमन ब त सारे कारनाम कए ह।
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को खब छकात भी थ ।
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म आपको इस लख क ज़ रए बचपन म लकर चलता
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, जसम कई सारी ख ी-मीठी याद बसी ई ह, जो
आजकल कम ही दखन को मलती ह। मझ तो लगता
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ह क बचपन ही एक ऐसा समय ह, जस याद करक े
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मन तरोताजा हो जाता ह। हमन कागज क नाव तो
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खब बनाई ह, जब बा रश होती थी, तो कागज क उस
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नाव को पानी म चलाया करत थ। बा रश क मौसम म
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कॉपी क आध प नाव बनान म चल जात थ। े
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बा रश म भीगना
बचपन म जब भी बा रश होती थी, तो हमारा दो ही
ग ी-डडा खलना
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काम होता था पहला कागज़ का नाव बनाकर उस े
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पानी म चलाना और दूसरा जब भी मौका मल बा रश य खल हम सभी लोग न बचपन म कभी न कभी तो
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म भ गना। बा रश म भ गन का हम हमशा इतजार ज़ र खला ह। म ी खोदन क बाद उसम ग ी
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करते रहते थे और जैसे ही मौका मलता हम बा रश म रखकर उस डड स मारन का एक अलग ही मज़ा था।
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कद पड़त थ। बा रश म भ गन क वजह स कई बार आज इसे बताने म ही काफ मज़ा आ रहा है, तो सो चए
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तबीयत भी खराब हो जाती थी, जसके कारण म ी- इसको खेलने म कतना मज़ा आता होगा।
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पापा स डांट भी सननी पड़ती थी, ल कन फर पापा
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दवा लाकर खलात और तबीयत फर ठीक हो जाती
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थी। ल कन, आज य ब त कम ही दखन को मलता ह। ै
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