Page 61 - आवास ध्वनि - सातवाँ अंक
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आवास न
2025-26
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दादा–दादी क क कहानी एक थ। ल कन, आज क ड जटल ज़मान म य खल
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कह गम हो गया ह। आज क ब इस खल स अन भग
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जब हम ब थ, तो सय प रवार होता था। दादा-दादी
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होत जा रह ह। इन खल क जगह क टर गम,
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साथ रहत थ। व रात को हम क -कहा नया सनाया
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वी डयो गम और मोबाइल न ल लया ह।जब कभी भी
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करत थ। य कहा नया भत क भी होती थी और
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हम अपन बचपन क याद आती ह, तो कछ बात को
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भारतीय वीर क भी। इन कहा नय स हम काफ कछ
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याद करक हम आन दत हो जात ह। वह , कछ बात को
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सीखन को मलता था। जो क हमारे सफल ज़ दगी म
याद करक आख म आस आ जात ह। हम याद क े
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हम अभी तक मदद कर रह ह। ल कन, आज क समय
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समदर म खो जात ह।
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म क -कहा नय का दौर ख होत जा रहा ह। इन
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क -कहा नय क जगह टीवी और मोबाइल न ल े
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हम सभी का बचपन रणा स भरा ह, क हमन े
ली ह। ै
बचपन म गल तया, नादा नयां और शता नयां क ह,
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जो अब याद आत ह तो मन उसम कह खो सा जाता ह। ै
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पापा क साइ कल और टर पर घमना हम सोचत ह क बचपन म हमन या- या गल तया ं
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क थी, जस अब कभी नह दोहराएग। ल कन, अब
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बचपन म पापा क साइ कल और टर पर घमान े बचपन तो बीत चका ह और वो दन भी बीत चक ह।
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क याद को हम कभी नह भला सकत। पापा क े फर भी बचपन क वो याद हमशा दलो- दमाग म
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ऑ फस स आत ही हम उ घमान का ज़द करन े अपनी जगह बनाए ए ह। ै
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लगत थ। पापा परेशान होत ए भी हम साइ कल क े
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क रयर पर बठाकर आसपास घमात थ। इस दौरान
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टॉफ क लए ज़द करन पर पापा हम खरीदकर दत े
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थ। वो दन हमारी ज़ दगी क खशनमा दन म स एक
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