Page 52 - लक्ष्य - चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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laHya
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खाने वाला इस लए क “चलो, आज कल से कम पड़ा।”
मारने वाला इस लए क “आज फर मौका मला।”
नंगे पाँव, लकड़ी क बैट और कसी भी बॉल से
गली–गली क ट खेलना – वही असली सुख था।
हमने कभी पॉक ट मनी नह माँगा,
और न माता– पता ने दया।
हमारी ज़ रत ब त छोटी थ ,
जो प रवार पूरा कर देता था।
छह महीने म एक बार मुरमुर या गुड़ मूंगफली क ग क मल जाए –
तो हम बेहद खुश हो जाते थे।
दवाली म फ लझड़ी क लड़ी खोलकर
एक–एक पटाखा फोड़ना – हम ब क ल भी छोटा नह लगता था।
कोई और पटाखे फोड़ रहा हो तो उसक पीछ –पीछ भागना –
यही हमारी मौज थी।
हमने कभी अपने माता– पता से यह नह कहा क
“हम आपसे ब त यार करते ह ” –
य क हम “I Love You” कहना आता ही नह था।
आज हम जीवन म संघष करते ए
दु नया का ह सा बने ह ।
क छ ने वह पाया जो चाहा था,
क छ अब भी सोचते ह – “ या पता...”
क ल क बाहर हाफ प ट वाले गो लय क ठ ले पर
दो त क मेहरबानी से जो मलता था –
वो कहाँ चला गया?
हम दु नया क कसी भी कोने म रह ,
ले कन सच यह ह क –
हमने हक कत म जया और हक कत म बड़ ए।
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