Page 53 - लक्ष्य - चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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laHya
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कपड़ म सलवट न आएँ,
र त म औपचा रकता रह –
यह हम कभी नह आया।
रोटी–स ज़ी क बना ड बा हो सकता ह –
यह हम मालूम ही नह था।
हमने कभी अपनी क मत को दोष नह दया।
आज भी हम सपन म जीते ह ,
शायद वही सपने हम जीने क ताक़त देते ह ।
और अंत म , म अपने इस लेख का समापन, न न पं य ारा क गा :-
"व त बदल गया, लोग बदल गए,
पर याद क खुशबू आज भी वही ह ।
हमारी पीढ़ी भले ही कताब म रह जाए,
पर उस ज़माने क मठास आज भी दल म िज़ंदा ह ।”
"हम भी जए थे उस दौर म ,
जब र त म मीठापन होता था,
कम पैस म भी भरपूर शयाँ,
और हर दल म व ास होता था ।”
"आज क र तार भरी िज़ंदगी म ,
शायद हमारी बात पुरानी लग ,
पर सच तो यह ह दो त ,
हमारा वो ज़माना और याद , आज भी अनमोल लग ।”
हमारा जीवन वत मान से कभी तुलना नह कर सकता।
हम अ छ ह या बुर –
ले कन हमारा भी एक “ज़माना” था......
जसे भुलाया नह जा सकता...... जसे भुलाया नह जा सकता......
ध यवाद
मह श शमा
बंधक (आई.टी.)
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