Page 49 - लक्ष्य - चंडीगढ़ क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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"वो भी एक ज़माना था......
बीते ज़माने क सुनहरी याद ......”
मेर य म , मुझे लगता ह क आप सब भी मेर इन खयाल ओर वचार से सहमत ह गे क हमारा भी एक ज़माना
आ करता था।आप अपनी बीती ई िज़ंदगी क उन पहलु को जब भी याद करते ह गे तो आपक मन म क वल यही
बात आती ह गी क वो बीता आ हमारा बचपन और वो समय भी या समय था जसे हम आज ब त मस कर रह ह
य क वो ज़माना भी हमारा अपना ज़माना आ करता था ।
दो त म बात उस पीढ़ी या उन लोग क कर रहा जनका ज म 1960 से लेकर 1980 म आ ह – खास उ ह लोग
क लए यह लेख तुत ह :-
यह पीढ़ी अब 45 पार करक 65-70 क ओर बढ़ रही ह ।इस पीढ़ी क सबसे बड़ी सफलता यह ह क इसने िज़ंदगी म
ब त बड़ बदलाव देखे और उ ह अपनाया भी......
1, 2, 5, 10, 20, 25, 50 पैसे देखने वाली यह पीढ़ी बना झझक मेहमान से पैसे ले लया करती थी।
याही–कलम/प सल/पेन से शु आत कर आज यह पीढ़ी माट फोन, लैपटॉप, क युटर को बखूबी चला रही ह ।
जसक बचपन म साइ कल भी एक वला सता थी, वही पीढ़ी आज बखूबी क टर और कार चलाती ह ।
कभी चंचल तो कभी गंभीर......ब त सहा और भोगा भी ले कन सं कार म पली–बढ़ी इस पीढ़ी ने कभी भी अपने
सं कार क ब ल नह दी ।
ट प रकॉड र, पॉक ट ां ज टर – कभी बड़ी कमाई का तीक थे।
माक शीट और टीवी क आने से जनका बचपन बरबाद नह आ, ये वही आ खरी पीढ़ी ह ।
क कर क र स, टायर लेकर बचपन म “गाड़ी–गाड़ी खेलना” इ ह कभी छोटा नह लगता था।
“ सलाई को ज़मीन म गाड़ते जाना” – यह भी खेल था, और मज़ेदार भी।
“क े आम तोड़ना” इनक लए चोरी नह था।
कसी भी व कसी क भी घर क क डी खटखटाना गलत नह माना जाता था।
“दो त क माँ ने खाना खला दया” – इसम कोई उपकार का भाव नह , और
“उसक पताजी ने डांटा” – इसम कोई ई या भी नह ...... यही आ खरी पीढ़ी थी।
दो दन अगर कोई दो त क ल न आया तो क ल छ टते ही ब ता लेकर उसक घर प च जाने वाली पीढ़ी।
कसी भी दो त क पताजी क ल म आ जाएँ तो –
म कह भी खेल रहा हो, दौड़ते ए जाकर खबर देना:
“तेर पापा आ गए ह , चल ज दी” – यही उस समय क े क ग यूज़ थी।
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