Page 22 - पूर्वांचल - गुवाहाटी क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
P. 22

ं
                                                      �
              असंम का े  गुुवााहाटीी मं मा काामाख्या देेवाी काा महिदेर


                                                                                   �
                                                                        े
                                                                 पूजा करा� औरा आशीवंादे ले� क निलेए यहोा एकनित्रीते होोते हों। स्थाा�ीय
                                                                                                 ँ
                                                                                                           े
                                                                                         े
                                                                                      े
                                                                                       े
                                                                                         े
                                                                                    े
                                                                 निहोंदेू भाी इस देौराा� अप�-अप� पूजा स्थालेी को बंंदे राखते हों औरा
                                                                                                              े
                                                                                  े
                                                                     े
                                                                 अप� पूजाघारां को धो� औरा साफी करा� क बंादे खोलेते हों। इस देौराा�
                                                                                                े
                                                                                              े
                                                                                                          े
                                                                 मंनिदेरा का मुख्य द्वाारा बंंदे राहोतेा होै औरा भाक्त/पुजाराी मंनिदेरा क बंाहोरा पूजा-
                                                                                                          े
                                                                                    े
                                                                 अच��ा औरा अ�ुष्ठाा� कराते हों।
                                                                  ँ
                                                                 मा  कामख्या  मंनिदेरा  असम  की  समृद्ध  सांस्कृनितेक  निवंराासते  औरा
                                                                 आध्यानित्मक परांपरााओंं का प्रतेीक होै। इस मंनिदेरा का इनितेहोास 10वंं-
                                           श्रीीमती निदेर्पोाली देासं,   17वंं शतेाब्देी का होै औरा इसकी वंास्तेुकलेा परा प्राची� कामरूप
                                          उर्पो महाप्रबंंधकु (निवंनिध)  साम्रााज्य का प्रभाावं होै। असनिमया औरा भाारातेीय स्थाापत्य शैनिलेयं का
                                                                                            अ�ूठा निमश्रृर्ण इसे एक आकषा�क
             ँ
           मा  कामाख्या देेवंी का मंनिदेरा,                                                 संराच�ा  बं�ातेा  होै।  यहो  मंनिदेरा
                 े
           असम क गुुवंाहोाटीी मं निस्थाते एक                                                तेांनित्रीक परांपरााओंं मं भाी महोत्वंपूर्ण�
                                                                                                   ँ
           पनिवंत्री शनिक्तपीठ होै।                                                         होै,  जहोा  इसे  आध्यानित्मक
                                                                                            निवंकास  औरा  आत्म-साक्षात्कारा
           यहो  मंनिदेरा  शनिक्त  स्वंरूपा  देेवंी                                          का प्रतेीक मा�ा जातेा होै।
           कामाख्या  को  समनिप�ते  एक
                                                                                                              े
                                                                                                          े
                                                                                                                 �
           पूज�ीय निहोंदेू तेीथास्थाले होै। यहो                                             देुनि�या भारा से आ� वंाले पयटीक
                         �
                                                                                                  े
           प्राची� मंनिदेरा 51 शनिक्तपीठं मं से                                             मंनिदेरा  क  अद्भुुते  स्वंरूप  को
                                                                                                 े
                                                                                                        े
           एक होै औरा निहोंदेू धम�, निवंशेषाकरा                                             नि�होाराते हों, इसक इनितेहोास औरा
                                                                                                                 े
                                                                                                             े
           शनिक्त  परांपराा  मं  अत्यनिधक                                                   पौराानिर्णक  कथााओंं  क  बंारा  मं
                                                                                                 े
           आध्यानित्मक  महोत्वं  राखतेा                                                     सीखते हों औरा जीवंंते सांस्कृनितेक
                                                                                                                 े
                                  े
           होै।  इस  मंनिदेरा  मं  देेवंी  सतेी  क                                          वंातेावंरार्ण का अ�ुभावं कराते हों।
                    े
                            े
           आत्मदेाहो क बंादे उ�क शराीरा क                                                   यहो  भाी  मा�ा  जातेा  होै  निक  मा  ँ
                                  े
                                                                                                                  े
                 े
                   े
           अंगु निगुरा था। ऐसा मा�ा जातेा होै                                               कामाख्या देेवंी की पूजा करा� से
           निक यहो मंनिदेरा वंहो स्थाा� होै जहोा  ँ                                         आध्यानित्मक निवंकास औरा सुराक्षा
           उ�की योनि� (स्त्ी प्रज�� अंगु)                                                   प्राप्त होोतेी होै।
           निगुराी थाी, निजससे यहो शनिक्त पूजा                                              मा कामाख्या देेवंी क मंनिदेरा का
                                                                                                            े
                                                                                             ँ
            े
           क  निलेए  एक  पनिवंत्री  स्थाले  बं�                                             आध्यानित्मक महोत्वं निदेव्य स्त्ीत्वं
           गुया।                                                                            औरा  देेवंी  की  शनिक्त  से  इसक
                                                                                                                   े
                                                                                                  ं
                       े
           यहो मंनिदेरा अप� अंबंुबंाची मेले  े                                              जुड़ेावं म गुहोरााई से नि�निहोते होै।
            े
           क निलेए प्रनिसद्ध होै, जो देेवंी क                                                        *****
                                  े
                        े
           मानिसक  धम�  क  उपलेक्ष्य  मं
           म�ाया  जा�  वंालेा  एक  उत्सवं
                    े
           होै। इस देौराा� देुनि�या भारा से भाक्त
                                                              22
   17   18   19   20   21   22   23   24   25   26   27