Page 24 - पूर्वांचल - गुवाहाटी क्षेत्रीय कार्यालय की पत्रिका
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           स्वंगु� होै, जबंनिक �ागुालेड मं देजुको घााटीी मा�सू� क देौराा� फी ू लें क
           स्वंगु� मं बंदेले जातेी होै ।
                                   े
           वंन्यजीवं अभायाराण्यः यहो क्षत्री कई वंन्यजीवं अभायाराण्यं का घारा
           होै, निजसम काजीरांगुा रााष्ट्रीीय उद्योा� भाी शानिमले होै, जो अप� एक संगु
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                                                       े
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           वंाले गुड क निलेए प्रनिसद्ध होै । राोमांच चाहो� वंाले लेोगु जंगुले सफीाराी,
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           पक्षी देेख� औरा प्रकृनिते की सरा का आ�ंदे ले सकते हों औरा यहो क्षत्री
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           की समृद्ध जवं निवंनिवंधतेा मं खुदे को डूबंो सकते हों ।
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           �देी कुा वंभावंः इस क्षत्री मं शा�देारा �निदेया हों, निज�मं ब्राह्मपुत्री भाी
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                                                                 जवं निवंनिवंधतेा क निलेए प्रनिसद्ध होै । यहो क्षत्री एक जवं निवंनिवंधतेा का
                                                                              े
                                                                  ै
                                                                                                 े
                                                                                                        ै
                                                                                   �
                                                                 होॉटीस्पॉटी होै, निजसमं देुलेभा औरा लेुप्तप्राय प्रजानितेयं सनिहोते वं�स्पनितेयं
                                                                                                          े
                                                                 औरा जीवंं की एक निवंस्तेृते श्रृृंखलेा होै । क्षत्री क होरा-भारा जंगुले जीवं�
                                                                                                    े
                                                                                                      े
                                                                                                 े
                                                                     े
                                                                 से भारा होुए हों, जो पौधं, पनिक्षयं, स्ते�धारिरायं औरा सराीकृपं की गुई
                                                                                          े
                                                                 प्रजानितेयं को आवंास प्रदेा� कराते हों ।
                                                                 उत्तरा पूवं� भााराते निसफी एक गुंतेव्य �हों बंनिल्क उस्से कहों ज्यादेा होै, यहो
                                                                                �
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           शानिमले होै, जो देुनि�या का सबंसे बंड़े �देी द्वाीप, माजुलेी का घारा होै जो
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           की �देी एक लेोकनिप्रय पयटीक आकषा�र्ण होै, औरा यहो क्षत्री बंहोतेराी� �देी
           परिराभ्रमर्ण का अवंसरा प्रदेा� करातेा होै ।
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                                 े
           राोेमांचं कु निलए स्वंगः यहोा क निवंनिवंध परिरादृश्य ट्रीनिक ं गु, होाइनिक ं गु औरा
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           पवं�तेाराोहोर्ण क अवंसरा प्रदेा� कराते हों । यहो क्षत्री प्राची� मंनिदेरां औरा बंफी
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                                                       े
           से ढंकी पवं�ते चोनिटीयं से भाी भाराा होुआ होै, जो इसे राोमांच क शौकी�ं
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                                                                                            े
           क निलेए स्वंगु� बं�ातेा होै ।                         एक ऐसा अ�ुभावं होै जो आपक जा� क बंादे भाी लेंबं समय तेक बं�ा
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                                                                                                 ै
                                                                            े
                                                                 राहोतेा होै । इसक शा�देारा परिरादृश्य, समृद्ध जवं निवंनिवंधतेा औरा जीवंंते
           संांस्कु ृ नितकु  ता�ा-बंा�ाः  पूवंोत्तरा  भााराते  निवंनिवंध  संस्कृनितेयं  औरा   संस्कृनिते प्रकृनिते की भाव्यतेा क निदेले मं एक अनिवंस्मरार्णीय झलेक पेश
                                                                                      े
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           परांपरााओंं का एक बंहोुरूप देश�क होै । यहो क्षत्री पूरा वंषा� कई त्यौहोारा   करातेी होै । तेो आइए, अप�ा बंगु पैक करा औरा उत्तरा पूवं� भााराते की
                                                                                        ै
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           म�ातेा होै, निजसमं इसकी अ�ूठी निवंराासते ओंरा जीवंंते कलेा रूपं का   अदेम्‍य सुंदेरातेा की खोज क निलेए एक साहोनिसक यात्रीा परा नि�कले पड़े ।
                                                                                                                   े
                                                                                    े
           प्रदेश�� होोतेा होै ।
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           संाधाराणी सं र्पोराः यहो क्षत्री होरा निकसी क निलेए क ु छे � क ु छे प्रदेा� करातेा
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           होै,  चाय क बंागुा�ं औरा सुगुंनिधते मसालेा उद्योा�ं की खोज से लेकरा
           प्राची� मठं औरा गुुम्‍फीाओंं की यात्रीा तेक, मेघाालेय मं मावंनिले�ॉन्गु,
                                    े
           निजसे भागुवंा� का अप�ा बंगुीचा क रूप मं जा�ा जातेा होै, अप�ी सफीाई
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           क निलेए प्रनिसद्ध होै, जबंनिक निसनिक्कम मं त्सोमो झीले एक लेुभाावं�ी
           प्राकृनितेक आ�य होै । इसक अलेावंा, पूवंोत्तरा भााराते अप�ी समृद्ध
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